सरगुजा को समर्पित किया पूरा जीवन … जाते-जाते भी कर गए देहदान

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एक युग की समाप्ति…राष्ट्रपति पुरस्कृत प्रधानाचार्य समाजसेवी डा. भागीरथी गौरहा नहीं रहे, उनके इच्छा अनुरूप परिवार ने मेडिकल कॉलेज अंबिकापुर को किया देहदान
अंबिकापुर/ सरगुजा के प्रसिद्ध समाजसेवी डा. भागीरथी गौरहा नहीं रहे, 12 फरवरी प्रातः 4 बजे डा. भागीरथी गौरहा ने 85 वर्ष की अवस्था में अपने कर्मभूमि अम्बिकापुर में अंतिम सांस ली। वे सरगुजा के प्रसिद्ध समाजसेवी, राष्ट्रपति पुरस्कृत प्रधानाचार्य, गजानन माधव मुक्तिबोध पुरस्कृत सहित कई सम्मान प्राप्त करने वाले और गुरुजी के नाम से प्रसिद्ध रहे। डा. गौरहा ने वर्ष 1961 से अम्बिकापुर में एक शिक्षक के रुप में कार्य आरंभ किया था,फिर वे एनसीसी अधिकारी, अग्निशमन अधिकारी, रेडक्रास काउन्सिलर एवं सचिव, आस्था निकुंज वृद्धाश्रम के फाउन्डर सहित उच्च कोटि के पौराणिक, भागवताचार्य, ज्योतिषाचार्य और संस्कृत भाषा के प्रकाण्ड विद्वान थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन सरगुजा में निःशक्तजनो, आदिवासयों एवं वृद्धाजनों की सेवा में बिता दिया। उनके व्यक्तित्व एवं कृतिव्य की प्रशंसा सरगुजा में उन्हे जानने वालों की सदा मुख पर रहती थी। डा. भागीरथी गौरहा ब्राह्मण समाज के विप्रकुल गौरव रहे और उन्हें श्रीमद्भागवत का अपूर्व ज्ञान था। उनके निधन से अंबिकापुर के सभी प्रबुद्ध वर्ग में शोक की लहर व्याप्त है। वे अपने पीछे तीन पुत्रियां और एक पुत्र छोड़ गए हैं। उनके पुत्र डा. श्रीधर गौरहा स्वयं धर्मभूषण, विद्यावाचस्पति जैसे सम्मान से सम्मानित व्यक्ति हैं और बिलासपुर में निवासरत हैं। डा. भागीरथी गौरहा बिलासपुर के ग्राम सकरी के निवासी हैं परन्तु लगभग पूरा जीवन अम्बिकापुर को दे दिया। उनकी अंतिम इच्छा अपने पूरे शरीर को मेडिकल कालेज को दान मे देने की थी जिसे उनके पुत्र और परिवारजन पूरा किया।
जीते जी ही देहदान को बता चुके थे अंतिम इच्छा, सरगुजा में पहला संकल्प पत्र उन्हीं ने भरा
स्व.डा. भागीरथी गौरहा की अंतिम इच्छा थी कि निधन के बाद मेरे शरीर को एम्स में दान कर दिया जाए. परिवार वालों ने कहा कि चुकी अंबिकापुर उनकी कर्मभूमि थी इसलिए सभी ने निर्णय लिया कि उनके देह को मेडिकल कॉलेज अंबिकापुर को दान कर दिया जाए।
इसके लिए उन्होंने 6 वर्ष पूर्व देहदान के लिए सरगुजा का पहला संकल्प पत्र भरा था.
पत्नी ने किया था अंगदान
स्व.डा. भागीरथी गौरहा की पत्नी के निधन के बाद उनके द्वारा भी भारतीय आयुर्वेद संस्थान नई दिल्ली को अंगदान किया गया था. पत्नी के निधन के समय स्व.डा. भागीरथी गौरहा की उम्र लगभग 45 वर्ष की थी. उन्होंने दूसरी शादी न कर अपने बच्चों को अच्छे मुकाम तक पहुंचने स्वतंत्र किया

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