जनजातीय अंचल भी निभा रहे हैं सक्रिय भूमिकाविशेष लेख
बलरामपुर/ राज्य शासन की महत्वाकांक्षी पहल “मोर गांव मोर पानी महाअभियान” जिले में जल संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक परिवर्तनकारी आंदोलन बनता जा रहा है। जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में जल संकट से निपटने, वर्षा जल के संचयन और पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने के उद्देश्य से यह अभियान जोर-शोर से चलाया जा रहा है। कलेक्टर श्री राजेन्द्र कटारा एवं सीईओ जिला पंचायत श्रीमती नयनतारा सिंह तोमर के मार्गदर्शन में समग्र जल प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण की रणनीति पर आधारित कार्ययोजना को जमीनी स्तर पर क्रियान्वित किया जा रहा है।
अभियान के तहत प्रधानमंत्री आवास योजना के हितग्राहियों द्वारा अब तक लगभग 11,000 सोख्ता गड्ढों का निर्माण किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त, सार्वजनिक सहभागिता से करीब 30,000 सोख्ता गड्ढों का निर्माण हुआ है, जो ग्रामीणों की सक्रिय भागीदारी को दर्शाता है। जल संरक्षण के साथ-साथ मृदा अपरदन को रोकने और पर्यावरण संरक्षण के लिए जिले में लगभग 16,000 पौधों का रोपण भी किया गया है।

जिले में अधिक से अधिक वर्षा जल संचयन का लक्ष्य लेकर मैदानी अमला लगातार प्रयासरत है। इसके अलावा मनरेगा के माध्यम से गैबियन स्ट्रक्चर, कंटूर ट्रेंच, बोल्डर चेक डेम, मिट्टी के बांध, वृक्षारोपण एवं जल निकासी, डबरी निर्माण,तालाब निर्माण व सुधार जैसे कार्यों को प्राथमिकता दी जा रही है। ये संरचनाएं जल संग्रहण के साथ-साथ मृदा कटाव की रोकथाम और कृषि उत्पादकता में वृद्धि हेतु उपयोगी सिद्ध होंगी।
विशेष पिछड़ी जनजातियों वाले क्षेत्रों में भी दिख रहा असरजिले के कुसमी, शंकरगढ़ एवं अन्य वनांचल क्षेत्रों में विशेष पिछड़ी जनजातियों की बहुतायत है, जो गर्मी के दिनों में जल संकट से प्रभावित रहते हैं। ऐसे क्षेत्रों में भी इस अभियान के अंतर्गत जागरूकता बढ़ी है और समुदाय की सक्रिय भागीदारी देखने को मिल रही है। इन इलाकों में दीवार लेखन, जनचर्चा और श्रमदान के माध्यम से लोगों को जल संरक्षण से जोड़ने का कार्य किया जा रहा है। इसी प्रकार इन क्षेत्रों में मनरेगा के तहत जीआईएस आधारित वाटरशेड परिकल्पना पर आधारित निर्माण कार्य प्राथमिकता से जारी है। इसके अलावा इन क्षेत्रों में सार्वजनिक कूप, निजी डबरी और तालाबों का निर्माण और गहरीकरण का कार्य भी किया गया है। निश्चित ही इन प्रयासों से आने वाले समय में इन क्षेत्रों में जल उपलब्धता को लेकर सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेगा।
इस अभियान को केवल सरकारी कार्यक्रम न मानते हुए इसे जनभागीदारी से जनआंदोलन का रूप दिया गया है। दीवार लेखन, जल शपथ, ग्रामसभाएं, रैलियां और जन चौपाल जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से आमजन को जोड़ा गया है। युवा वर्ग निर्माण कार्यों में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। वहीं, मनरेगा के तहत ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध कराकर कार्यों की गुणवत्ता और गति दोनों को बढ़ाया गया है।

“मोर गांव मोर पानी” अभियान केवल संरचनाओं तक सीमित नहीं है। मृदा स्वास्थ्य सुधार, कृषि व बागवानी को बढ़ावा, मत्स्य पालन, किचन गार्डन, बहुफसली खेती एवं रोजगार सृजन जैसे अनेक बहुआयामी प्रयास इस अभियान का हिस्सा हैं। इनसे ग्रामीणों की आजीविका को भी स्थायित्व मिलेगा। तकनीक, सुशासन और एकजुटता के साथ नए संरचनाओं के निर्माण से जिला “मोर गांव मोर पानी” अभियान को एक जनांदोलन में बदल रहा है। विशेष पिछड़ी जनजातियों के गांवों से लेकर सामान्य ग्रामीण अंचलों तक, हर गांव में हर हाथ से जल सहेजने की दिशा में एकजुट प्रयास किया जा रहा है।










